Kus Pal Ke Liye
रास्ता -
िबलकुल सूना था
चंद मुसािफर आए
कुछ पल के िलए
चंचलता की लहरे दौड पडी
िदलकशी छा गई
मुसािफर चले गए
रास्ता-
िफर सूना रहा गया
रात-
िबलकुल सूनी थी
अँधेरी थी
भोर हुई सूरज िनकला
कुछ पल के िलए
हरसूँ रौशनी छा गई
चंचलता छा गई
सूरज चला गया
रात-
िफर सूनी रहा गई
िजंदगी-
िबलकुल सूनी थी
कुछ मेहमान आए
स्वप्न बन कर
कुछ पल के िलए
ऐसा लगा, िजंदगी सँवर गई
स्वप्न टूटा
िजंदगी-
िफर सूनी रहा गई
poem by Milap Singh
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Sanyukat Vishal Bharat
कैसा वो दौर था
कैसी थी हवाएँ
जब अपने प्यारे भारत को
लग रहीं थी बद्दुआएँ
जब घ्रीणा की दुर्गंध
हर ओर से थी आती
जब बन गया था वैरी
अपना धर्म- समप्रदाय और जाित
न जाने कैसी वो शतरंज थी
और कैसा था वो पासा
िजसने हर िकसी के मन में
भर दी थी िनराशा
कैसा वो दौर था
कैसी थी बहारें
जब दाडी-मूछ के भेद पर
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उन सरहदों से शरार्त
काश! के अब भी होता
वो अपना संयुक्त िवशाल भारत
poem by Milap Singh
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Sharab Ki Botal
शराब की बोतल
कितनी प्यारी है ये शराब की बोतल
डोल जाते है इसे देख के कितने मन
जब कहीं इसको इक बार खोल देते है
फिर वहां से जाने को नही करता मन
ये मेरे गम -ख़ुशी में शरीक होती है
अजीब सा बन गया है इससे अपनापन
जाम के बाद जाम जब में उठाता हूँ
साथ -ही -साथ में घटते है मेरे गम
साथ देती है मेरा यह दर्द मिटने में
जी में आता है रखूं पास इसे हरदम
MILAP SINGH
poem by Milap Singh
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